ववशवास की अच् छी लड़ाई लड़ना - Fight the Good Fight of Faith Hindi, v.2
पठ 5 उत् मता हम दिखाते हैं इस संसर में परमेश्र के पवित्र जनों और मसीह के रजदूतों के समन जीवन जीन
इसलिए प्रिय बच् ों के समन परमेश्र क अनुसरण करो; और प्रेम में चलो जैसे मसीह ने भी आप से प्रेम क ; और हमरे लिये अपने आपको सुखद क सुगन् के लिये परमेश्र के आगे भेंट करके बलिदन कर द । जैस पवित्र लोगों* के योग् है, वैस आप में व् यभिचार, और किसी प्रकर के अशुद् कम, लोभ* की चर्च तक न हो। और न निर्लज् त, न मूर्खत की तचीत की, न उपहस क , क् ोंकि ये तें शोभ नहं देती, वरन् धन् यवाद ह सुन जए। क् ोंकि आप यह जनते हो कि किसी व् यभिचार, अशुद् जन, लोभी मनुष् की, जो मूर् तिपूजक* के बर र है, मसीह और परमेश्र के रज् में विरसत नहं। ~ पौलुस इफिसियों को लिखत है (इफि. 5.1-5) इस सत्र के अंत तक, आप विश्वास के द्वार उत्तमत हम ते हैं को अपनओगे: • हमें परम प्रिय बच् ों की तरह परमेश्र क अनुकरण करन हिए| • मसीह में संत (पवित्र जन) के समन, दूसरों के समने हमें परमेश्र के आभर और पवित्र प्रज के रूप में अपने आपको उपस्थित करन है| • रजदूतों के समन, हमें उद्धार के सुसम र को मित्रों, पर रों, और पड़ौसिों से टन है, और दूसरों की से में मसीह के प्रेम को अच् छ कार् यों में प्रगट करन है| * लोभ – लोभ किसी चीज किसी व् यति से संबंधीत तीव्र इच् छा को कह ग है| यह किसी चीज की इच् छा करने से बडकर है, परन् त यह एक बहुत बड़ा ललच है जो वार्थपन और परमेश्र के उद्ध श् क अनदर करने से आत है| * स – एक संत वह है जो परमेश्र की संपत्ति के अनुसर अलग र ग है, जो उस व् यति के से तथ आर न में प्रदर् शित होत है| इसे अनेक र गलत समझ ग यह कहते हुए कि किसी क बर्ताव अस रण रूप से अच् छा तथ धार्मक है| परन् त शब् "संत" और "पवित्र करन" "पवित्रीकरण" एक ह वि र पर आ रित हैं: कुछ ऐस जो विशेष उद्ध श् के लिए अलग किये गए हैं| उदहरण के लिए, यदि आपके पस विशेष कपड़ तथ जूतें हैं जिन्ें आप विशेष अवसरों में पहनते हो, वे कपड़ विशेष कार् यक् रम के उद्ध श् के लिए "अलग किए गए हैं" ( पवित्र मने गए हैं)| उसी तरह, "संत" स रण लोग हैं जिनको परमेश्र ने उनकी आर न करने तथ से करने के लिए अलग कर र है| * मूर् तिपूजक – एक मूर् तिपूजक वह है जो सृजे गए वस्तुओं कि आर न करत है न कि सृष्टिकर्त की | क् ोंकि लोग हते हैं कि उनके जीवन में अच् छी अच् छी चीजे हों, और सम् या से स्वतंत्र हों, उन् ोंने परिस्थितियों पर नियंत्रण करने की कोशिश उन समर् थ्य की भलई प्त करने के द्वार की है जिसे वे समझ नहं सकते हैं| इसलिये लोग जल, मौसम, युद् में जय देने ले ईश्र के आकर की आर न करते हैं न कि वे सृष्टिकर्त पर भरोस करते हैं| दूसरे लोग उनके व् यतिगत लभ के ललची हैं और अपन भरोस पूँजी द, शिक्षा, धार्मक कार् , सैनिक कार् यों की पद्धत में लगते हैं| इसलिये एक मूर् तिपूजक वह है जो अपनी आवश् कतओं की पूर् ति को परमेश्र से करने की अपेक्षा किसी और से पूर करने को देखत है|
उद् धेश्
69
Made with FlippingBook Online newsletter creator